LIBERTY

      
    दादी के गुजरने के बाद दादाजी अकेले होगये थे। दादाजी ने 60 साल गुजार दिए। अब दादाजी का शरीर भी थक गया था। अब वो कोई भी काम नहीं कर शकते थे। इसलिए वो पुरे दिन गाव में गपशप करा करते थे। उनके लड़के शहर में रहेते थे इसलिए वो गाव में अकेले रहेते थे। वो खुद खाना भी पकाते थे। दोनो लड़को का शहर में खुद घर था इसलिए वो कई सालो से शहर में रहेते थे कभी कभी वो गाव में अपने मा-बाप को मिलने आया करते थे। गाव में दादाजी को तकलीफ होती थी इसलिए दादाजी को शहर में रहेने को बुला लिया। बड़े बेटे ने दो-तिन महीने तक दादाजी को उसके घर रखा और अब दादा को वो और ज्यादा महीने तक रखने को तेयार नहीं था। इसलिए दोनों भाइयो ने तय किया की कोण सा भाई पिताजी को अपने घर रखेंगा। तय किया की 6 महीने बड़ा भाई रखेंगा और 6 महीने छोटा भाई दादाजी को अपने घर रखेंगा और उनकी सेवा करेंगा। ऐसे ही दादाजी ने दो-तिन साल निकाल दिये। एकेले दादा पुरे दिन घर में क्या करे इसलिए वो कुछ घंटे बहार घूम आते और मंदिर जाया करते और प्रसाद खाया करते। वो मंदिर में बेठे हुए बुढो के साथ गपसप करा करते हे। खाने के टाइम वो घर आ जाते थे।

     राजुभाई के वहा 6 महीने रहने के बाद वो रमेशभाई के घर रहने को आते हे। दादाजी उनके कपडे और कुछ सामान लेकर घर अ जाते हे। रमेश के घर की पास ही एक मंदिर था। दादा वहा हररोज नाह-धोके मंदिर पहोच जाते थे। प्रसाद लेकर, दुसरे बुढो की साथ वो अपनी गपसप चालू कर देते। ऐसे ही दादाजी के कई दिन निकल गये।
              एक दिन रमेशभाई की पत्नी ने रमेशभाई को कहा, "दादाजी पुरे दिन बाहर जाकर लोगो से गप्पे मारते रहेते हे और मंदिर में प्रसाद भी ज्यादा खाते हे। अगर ज्यादा मीठी चीजे खाने से हो डायबिटीस गई तो हॉस्पिटल का खर्चा भी आना हो शरु जायेगा। उनको समझाओ की वो मंदिर में कम जाया करे। "
     रमेशभाई ने भी कहा, "अकेले हे, पूरा दिन घर में बैठकर क्या करेगे। ऊब जायेंगे, इससे अच्छा ये हे की वो बाहर घूम आयेगे तो उनका शरीर हल्का हो जायेंगा। और मंदिर जायेंगे तो भगवान का नाम भी हो याद जायेगा।"
      दो-तिन दिन ऐसे ही दोनों के बिच में रकजक हुई।
    
      जोशनाबेन रमेशभाई को बोले "पिताजी का घर से बाहर निकलना बंद करवायो। नही तो में घर छोड़ के चली जायूगी, बाद में अकेले रहना अपने बूढ़े बाप के साथ।"
      रमेशभाई बोले "तुम को जो भी हो कहना वो कहो पर एक शब्द भी बाबूजी के लिए नहीं निकलना वरना हो अनर्थ जायेगा।"
         जोशनाबेन बोले "में जा रही हु।"
   रमेशभाई ने जोशनाबेन को नहीं जाने दिया। अब रमेशभाई पिताजी और पत्नी के बिच में फस गये। पत्नी को समझाया पर वो नहीं मानी। इसलिए रमेशभाई ने दादाजी को कह दिया की घर से कम निकलना। पर दादाजी कभी कभी छिपकर मंदिर जाया करते। पर अचानक की दादाजी हो बीमार गये, बाद में दादाजी को अस्पताल ले गये।
    डॉक्टर ने कहा की "दादाजी को डायबिटीस हुई हे, क्यों की वो मीठी चीजे बहोत खाते हे। अब आपको ये ध्यान रखना हे की दादाजी मीठी चीजे कम खाए और अगर ज्यादा खायेंगे तो ज्यादा हो बीमार शकते हे। इसलिए दादाजी के खाने पर ज्यादा ध्यान देना और मीठी चीजे कम खिलाना। "
  ये सब सुनकर जोशनाबेन बोले "मेने कहा था की दादाजी को मंदिर में मत जाने दो रिजल्ट देख लियाना। वहा जाकर मीठे प्रसाद खाते होगे इसलिए डायबिटीस हुई हे।"
          रमेशभाई भी अब इस रोज की अंदरूनी कलह से ऊब गये थे।
        रमेशभाई उनकी पत्नी की बात सुनकर बोले "अब तू हो चुप जा। तू बंद होने का नाम ही नहीं लेती हे बस ऐसे-तेसे बोले ही जाती हे तेरे को कुछ समज में आता हे की नहीं।"
    दादा को घर जाने की छुटी मिल गयी इसलिए दादा को घर ले आये।
       रमेशभाई ने दादा को बोला "आज से मंदिर जाना बंद, प्रसाद खा खा के ज्यादा हो बीमार जयोंगे। वेसे भी पैसे तो हमारे जाते हे आपकी दवाई में, आप कहा पेसे निकाल ने पड़ते हे। ''
   दादाजी थोड़े दिन बाहर नहीं गये तो शांति नहीं मिली। दादाजी छुपके से कही बार मंदिर जा आते थे पर उनकी बहु को बता चल जाता था।
       तब जोशनाबेन दादाजी को बोले "कितनी बार समझाना पड़ेगा की बाहर मत जयो। समज में नहीं आता हे क्या।"
 वो बाद में रमेशभाई को बता देते की दादाजी आज बाहर गये थे। फिर से बेटा बाप को बोलने लगता हे। अब तो सचमुच में दादाजी का बाहर जाना पूरी तरह से हो बंद गया था। पुरे दिन दादाजी घर में अकेले क्या करे इसलिए वो घर में घुमा करे थे। कभी किसी चीज गिर हो गई तो उसे ठीक करते थे। और सोने के टाइम सो जाते थे। कभी वो उनके पोत्रो के साथ खेलते थे।

     ऐसे ही उनका समय हो ख़तम गया। जब जोशनाबेन उनको बोलते तो वो चुप होके खटिया पर बेठ जाते। दादा जेसे घर बंद होके हो रहेते ऐसे रहेते थे। इस स्थिति में दादाजी का मानसिक संतुलन बिगड़ गया। बाद में वो रूम में ही अपनी आवाज में गाना गाते रहेते थे। जब जोशनाबेन सब्जी लेने जाते थे और उनके पोत्र स्कुल हो गये तब छुपके बहार घूम के आ जाते थे। दादा जाने कोई हो केदी ऐसे घर में रहेते थे। दादा कभी कभी हो पागल गये हो ऐसे बर्ताव करते थे। रमेशभाई भी दादा के इस बर्ताव से ऊब गये और राजुभाई को अपने घर बुलाया।
   रमेशभाई बोले "में पिताजी को वृधाश्रम में भेजना चाहता हु क्यों की यह वो ठीक तरह से नहीं रहेते।"
    दादाजी को वृधाश्रम भेजनी की बात पर राजुभाई भी हो सहमत गये। आखिर में दादाजी को वृधाश्रम में भेजनो को तय किया।
    राजुभाई बोले "हम वृधाश्रम में दादाजी का खर्चा भी देगे और दादाजी वहा बहोत अच्छी देखभाल में रहेगे। हम उनको मिलने भी जायेगे। ''
      
   दादा ये सभी बाते सुन रहे थे। वो भी हो खुश गये क्यों की वृधाश्रम में सभी लोग उनकी तरह के ही होगे। वहा ढेर सारी बाते करने को मिलेंगी। उनको रोकने वाला भी कोई नहीं होगा। घूम ने को भी मिलेंगा। दादाजी तो बहोत हो खुश गये और सारी रात चेन से सो गये। दुसरे दिन दादाजी को बाहर गाव जाना ऐसा कह के दोनों बेटे उनको वृधाश्रम ले गये। बाद में वो दादाजी को वृधाश्रम छोड़कर चले गये। दादाजी को वृधाश्रम में आते ही जेसे आजादी मिली हो गई। दादाजी ने सारा जीवन उस वृधाश्रम में निकाला और बाद में उसी वृधाश्रम में मुक्ति मिल गई। 

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