FEELING FOR ANIMAL

     \
      अशोकभाई अहिशावादी और दयालु व्यक्ति थे। उनको एक लड़का था पर वो कार एक्सीडेंट में मर गया। उनको एक किराने की दुकान थी वो हर सुबह दुकान जाते थे और शाम को वापस आ जाते थे। प्लाट में रहेते करसनभाई के पास के उनके घर को कोई बिजनेस नहीं था क्यों की वो यहा नये नये रहेने को आये थे। अशोकभाई ने उनको बिजनेस चालू करवाया। शोकभाई ने करसनभाई पे इतना उपकार किया तो भी उनमे जरा सा भी घमंड नहीं था। इसलिए उनके बिच अच्छे सबंध बने। करसनभाई के प्लाट में एक कुतिया थी। बहोत सुन्दर थी और उसके कान खरगोश जेसे थे। हर साल वो बच्चे को जन्म देती थी पर एक भी बच्चा जिन्दा नहीं बचता था। एक के बाद एक बच्चे मर जाते हे। करसनभाई की पत्नी को कुते को पालना पसंद नहीं था। ठंड में कुतिया कई बार खटिया पर सो जाती थी और कई बार वो घर में खुस जाती थी। घर में जो खाना हो पीडीए वो खा लेती थी
   भावनाबेन बोलते "आप इस कुतिया को दूर रख के आयो।"
    कुतिया को प्लाट में और गली मे खाना मिल जाता था। इसलिए वो वहां से कभी नहीं जाती थी।
      जब कुतिया पिल्ले को जन्म देती तब गली के सभी छोटे छोटे लड़के पैसा इकट्ठा कर के बिस्किट और दूसरी चीजे खरीद के कुतिया को खिलाते थे। कुतिया कभी काटती नहीं थी। इसलिए छोटे छोटे बच्चे कुतिया के घर में जाकर पिल्ले के साथ खेलते थे और उनके नाम भी रखते थे। पर एक भी बच्चा जिन्दा नहीं रहेता था कोई बीमारी से मर जाता था तो कोई रोड पे गाड़ी के निचे आकर मर जाता था। अशोकभाई को चिंता होती की बिचारे बच्चे केसे मर जाते हे। अशोकभाई कोई भी हो समय तो प्राणी-पक्षियों की सेवा करने के लिए तेयार रहेते थे। अशोकभाई कुतिया और पिल्ले को खाने के लिए छोटे लडको को पेसे देते थे और लड़के उन पेसो से बिस्किट और दूध लाकर कुतिया और बच्चो को खिलाते थे। इस के सिवाय अशोकभाई कई बार सुबह-शाम कुतिया को रोटी खिलते थे। कई बार वो लड्डू भाई लेकर आते थे। अशोकभाई को भी प्राणियों की सेवा करने में एक अलग प्रकार का आनंद आता हे।
     कई बार अशोकभाई भी पिल्ले के साथ खेलते थे।
तब भावनाबेन बोले "आप भी क्या बच्चो जेसे बन जाते हे। अब आप हो बड़े गये हे।"
     बाद में अशोकभाई हस के चले गये।
              अशोकभाई मकरसंक्राति को पक्षी बचावो अभियान चलाते हे। लडको को भी कहेते थे की पक्षी-प्राणियों कि सेवा करो। लडको को लेकर वो मकरसंक्राति को पुरे शहर में जाते और घायल पक्षी को बचाते थे। पक्षियों को सावधानी से हॉस्पिटल ले जाते और वहा उनका इलाज करवाते थे। मकरसंक्राति को लडको को अकट्ठा कर के उनको कहेते की पतंग कम उड़ाना। जब अशोकभाई घायल पक्षी और प्राणी को देखते तो उनको बहोत दुःख होता था। उनसे उन जीवो का दर्द नहीं देखा जाता था। और वो जल्दी से एनिमल हॉस्पिटल में फोन करते थे। जब तक एनिमल हॉस्पिटल की एम्बुलेंस नहीं आती तब तक वो वहा खड़े रहेते थे। एम्बुलेंस में बिठाने के बाद वो वहा से जाते थे।
   भावनाबेन हमेशा करसनभाई को बोलते की "इस कुतिया को कही दूसरी जगह रख के आयो। पूरा घर गंदा कर देती थी।"
      करसनभाई ने कहा, "कुतिया अपने प्लाट की निगरानी रखती हे। उसके डर से कोई अनजान व्यक्ति भी अंदर आने से डरेंगा। वरना कोई भी व्यक्ति घर में घुस कर चोरी कर जायेंगा। वो प्लाट में रहती हे तो हमको क्या फरक पड़ता हे उसको रहेने दो प्लाट में। "
         भावनाबेन ने कहा, "कुतिया घर में गंदकी फेलाती हे और उससे घर के बच्चे बीमार हुए तो उनको अस्पताल लेकर जाना पड़ेंगा। अगर हो खुजली जायेंगी तो क्या करेंगे।"
       पिछले साल की तरह इस साल भी कुतियाने सर्दीयो के मोसम में चार पिल्लो को जनम दिया। पर इस फुल सर्दी के मोसम में एक बच्चा रात को ठंड से मर जाता हे। तिन बच्चे जिन्दा रहेते हे। करसनभाई मरे हुए बच्चे को सुबह बाहर निकलवा देते हे। कुतियाने पिल्लो को जनम दिया हे ऐसी बात सुनकर अशोकभाई उसके लिए गरमा गरम राब बना के लाते हे और खिलाते हे।
    छोटे छोटे बच्चे कुतिया के घर में जाकर पिल्लो के साथ खेलते हे। इस साल उनके नाम भी रख दिए। जो सफेद और काले रंग का पिल्ला था उसका नाम चिन्टू रखा और दुसरे दोनों पिल्लो का नाम टोमी और बंटी रखा। बंटी सफ़ेद रंग का पिल्ला था। सभी बच्चो को बंटी बहोत पसंद आता था। क्यों की उसका रंग सफ़ेद था। बच्चे उन पिल्लो के पीछे भागते और पकड़ा पकडे का खेल खेला करते थे। जब लड़के पिल्लो के लिए खाना लेकर आते तो भावनाबेन उनको डांटते।
       भावनाबेन कहेते की "पिल्लो को बाहर लेकर खिलाओ और अपने अपने घर ले जाओ और खिलाओ।"
  पर सभी बच्चे के माँ-बाप बच्चो को बोलते इसलिए वो चुपके से पिल्लो को कुतिया के घर में रख कर चले जाते।
       
    एक दिन जब कुतिया बच्चे को लेकर प्लाट में आ रही थी तब भावनाबेन ने कुतिया को जाडू मारा। इसलिए कुतिया वहा से चली गई और रोड पे आके खड़ी रही तब ही रास्ते पर स्पीड से आ रही कार कुतिया पर चल गई। वो जोर जोर से चिलाने लगी। तभी गली में रहेते हरेशभाई उनके घर से बाहर निकल आये और देखा तो कुतिया घायल पड़ी थी। हरेशभाई ने गाड़ीवाले को रोकने का ट्राय किया पर वो गाड़ीवाला गली से निकल गया। कुतिया दर्द से चिला रही थी। गली के सभी लोग हो एकट्ठे गये। कुतिया की तरफ देखा तो कुतिया के पिछले दोनों पेर टूट गये थे। वो खड़ी भी नहीं हो सकती थी। हरेशभाई ने करसनभाई लड़के को बुलाकर कुतिया को प्लाट में ले जाने को कहा।
          भावनाबेन ने कहा, "इस कुतिया को प्लाट में ना लायो। इससे अच्छा ये हे की उसको अस्पताल ले जायो। ''
         जब अशोकभाई दुकान से घर आ रहे थे तब गली में लोगो की भीड़ देखकर वो वहा आये। अशोकभाई ने देखा तो कुतिया लोही-लुहान थी। उसके पेरो मे से खून निकल रहा था। अशोकभाई ने तुरंत एनिमल हॉस्पिटल में फोन किया। बाद में हॉस्पिटल से एक डॉक्टर आया। कुतिया में हभी भी जान थी। उन्होंने बेहोशी का इंजेक्शन कुतिया को दिया। बाद में डॉक्टर ने उसके पेर पर दवाई लगाकर पट्टी बांध दी। थोड़ी सी दवाई भी दी।
       डॉक्टर ने कहा, "कुतिया हो को ज्यादा दर्द तो तुरंत फोन करना।"
          अशोकभाई ने पूछा "कुतिया कितने दिन में ठीक हो जाएगी।"
    डॉक्टर कहा, "मेरे हिसाब से आप इसकी अच्छी देखभाल करोगे। तो बीस-पंदरा दिन में ठीक हो जाएँगी।"
        करसनभाई डोक्टर को बाहर तक छोड़ने गये।
    अशोकभाई ने उसके लिए निचे बोरी डालते हे और बाद में वो कुतिया को बोरी पर सुलाते हे। कुतिया चल नहीं सकती थी इस लिए एक ही जगह बेठी रहती हे। दुसरे दिन कुतिया ठीक नहीं लग रही थी इसलिए अशोकभाई ने डॉक्टर को फोन करके बुलाया। डॉक्टर ने दूसरी दवाई दी और एक पट्टी दी।
         डॉक्टर ने कहा, "इस पट्टी को गरम कर के कुतिया के पेर पर हर सुबह-शाम रखना। और गरम पानी भी उसके पेर पर डालना। जिससे उसके पेर की हडियों पर असर होगा और वो जल्दी से हो ठीक जाएगी।"
         अशोकभाई सुबह-शाम प्लाट में आकर लडको के पास से पानी गरम करवा के पेर पर डालते थे। बाद में वो गरम पट्टी पेर पे रखते हे। खाने में दवाई भी देते हे। पिल्ले भी माँ की हालत देखकर रो रहे थे और माँ की आसपास घुमा करते थे। अशोकभाई पिल्लो के लिए दूध लेकर आते और उनको पिलाते थे। डॉक्टर को बुलाकर कई बार चेकअप करवाते थे। पिल्लो की माँ अब थोड़ी ठीक हुई। कई बार वो थोडिक देर तक चलती पर निचे गिर जाती थी। तो कई बार वो दूर तक चल आती।
   अशोकभाई ने खुश होकर कहा, "कुतिया अब हो ठीक गई हे।"
      पर ये ख़ुशी ज्यादा दिन तक नहीं चली। अचानक उसके घाव में एक दिन कीड़े आ गये। पिल्ले माँ की आसपास रहेते थे इसलिए उसके कीड़े पिल्लो को न लग जाय। इसलिए पिल्लो को माँ से अलग रखते थे। अशोकभाई ने डोक्टर को बुलाया और कुतिया का चेकअप करवाया।
      डोक्टर साहबने थोड़ी दवा दी और कहा "जब घाव में से कीड़े निकले तब ये दवाई उसके घाव में डालना तो सब कीड़े मर जायेगे।"
     अशोकभाई भी कई बार पेर का घाव साफ कर के दवाई डालते थे और लडको को दवाई डालने को कहेते थे। पिल्लो की माँ अब चल सकती थी पर अभी भी घाव में कीड़े थे। एकबार कुतिया बाहर चली गई और वापस नहीं आई इसलिए अशोकभाई ने कुतिया को ढूढने को लड़के को पुरे शहर में भेजा पर वो नहीं मिली। बाद में बच्चो को अशोकभाई ने पाले। वो बच्चे आज अशोकभाई के घर की निगरानी रख रहे हे।

No comments: