साइकल का अर्थ दो पहिये वाला वाहन। पर संजय के लिए उसका अर्थ दूसरा था। संजय को दूर हो जाना या नजदीक तब वो साइकल का ही उपयोग करता था। संजय को उसके दोस्त बाइक चलाते देखकर इर्षा होती थी। पर वो क्या करे। उसके पास इतना पैसा भी नहीं था की वो बाइक खरीद शके। इसलिए वो साइकल ही चलाता था। उसके माँ बाप थोड़े से गरीब थे और आर्थिक तंगी में थे। पर संजय साइकल का इतना शोकिन था की वो पुरे दिन साइकल ही चलाता था। कोई भी हो काम तो वो साइकल के बिना नहीं करता था। जब आप उसे साइकल दो तो वो फटाफट आपका काम कर देगा।
अब गाव की स्कुल में पढाई भी हो ख़तम गई थी और आआगे पढ़ नहीं शकते थे। इसलिए संजय के माँ बाप ने उसे बाजार की कपडे की दुकान में नोकरी पर रख दिया। वो हररोज सुबह साइकल दूकान लेकर जाता था। और दोपहर को वो खाने के लिए आता और वापस वो दुकान साइकल लेके जाता था। अब तो उसको नोकरी रहे दो-तिन हो महीने गये थे। साइकल तो उसकी जिव बन हो गई ऐसे ही उसको रखता था। दुकान का कोई भी हो काम तो वो साइकल को लेकर ही जाता था। एक दिन उसको दुकान जल्दी जाना था इसलिए वो जल्दी घर से निकल गया। दुकान आके वो उसके काम में मशगुल हो गया। दोपहर हुई और शेठने उसे खाना खाने के लिए घर को जाने को कहा। वो दुकान के बाहर निकलकर जहा वो हररोज साइकल खड़ी करता था वहा देखा तो साइकल नहीं थी.संजय ने उधर-इधर देखा पर साइकल नहीं दिखाई दी वो रोने लगा। संजय आजू-बाजू के दुकान वालो से पूछने लगा की मेरी साइकल देखि हे पर सभी ने ना कहा। संजय तो अब ज्यादा गभरा गया।
संजय ने शेठ को कहा "शेठजी मेरी साइकल नहीं दिखाई दे रही, मुझे लगता हे की कोई मेरी साइकल चोरी कर गया। ''
शेठने भी पूरी बाजार में साइकल ढूढने में लड़के दोडाये पर साइकल कही नहीं मिली। बाजार की हर दूकान और हर इन्सान को पूछो पर कोई जवाब नहीं मिला।
शेठ ने कहा, "तूने दूसरी जगह तो साइकल खड़ी नहीं की हे ना। और घर पे भूल कर तो नहीं आया हे ना। कोई अपनी दुकान का लड़का तो साइकल लेकर नहीं गया हे ना। एक बार याद कर लो की साइकल कहा हे।"
संजय ने कहा, "नहीं शेठजी मेने सुबह ही साइकल इस पेड़ के निचे खड़ी की थी। बता नहीं कहा चली गई।"
संजय का चहेरा लाल हो कलर का गया और पसीना भी छूटने लगा। वो सोचने लगा की साइकल आखिर मर गई कहा। संज हररोज साइकल दुकान के सामने वाले पेड़ के निचे खड़ी करता था ताकि साइकल उसकी नजर में रहे पर आज उसकी नजर साइकल पे न रही। इस लिये आज साइकल की चोरी हो गई।
शेठ बोले "जो होना था हो वो गया अब चलो काम पे लग जयो। चोरी हुई साइकल थोडिक मिल जायेगी।"
गर्मी भी बढ़ रही थी। संजय आखिर में साइकल नहीं मिलती हे तो वो घर पे खाने के लिए चला जाता हे। वो रस्ते में सोच रहा था घर पे आज मार खानी पड़ेगी.जेसे ही वो घर में दाखिल हुआ तो उसकी आखे फट गई। देखा तो सामने साइकल पड़ी थी।
उसकी मम्मी बोली "ओ संजय आज क्यों पैदल चले गये बिना साइकल लिए। ''
साइकल को देखकर मनमे ही मनमे संजय मुस्कुराने लगा। बाद में संजय को याद आया की आज सुबह में जल्दी में साइकल लेना भूल गया।
बाद में संजय खाने के बाद साइकल लेकर दुकान गया। दूकान के शेठने साइकल देखकर चोक गये।
शेठ ने संजय को पूछा "साइकल कहा से मिल गई। ''
तब संजय ने कहा "में जल्दी में सुबह को गहरे से साइकल लेना भूल गया था।"
शेठ ने संजय को बोला "तूम भूल हो जाते ओरे हमको भागना पड़ता हे। ऐसा काम मेरी दुकान में मत करना। ''
सब हस पड़े और बाद में सभी अपने अपने काम में लग गये।